लालच कम होने के बजाय मजीद बढ़ती ही चली जा रही है।
लालच कम होने के बजाय मजीद बढ़ती ही चली जा रही है।
नेकी की ही़रस में दुनिया व आखरत की क़ामयाबी है।
दुनिया की लालच का नशा इंसान को अच्छी सोह़बत से मह़रूम कर देता है।
बुजुर्गाने दिन सारी जिंदगी माल की मज़म्मत फरमाई ,
हम माल कि मोहब्बत में फंस चुकेे हैं।
पैसा हो चाहे जैसा हो इस जैसी सोच ने ह़लाल व ह़राम की तमीज़ को खत्म कर दिया है।
इंसान की हिर्ष कभी पूरी नहीं हो सकती,
अगर सोने से भरी दो वादियां भी मिल जाए।
तब भी और खवाहीश करता है।
और हरगिज़ वह यह नहीं समझता कि मुझे माल दौलत की अब ज़रूरत नहीं है।
हमारे बुजुर्गाने दीन माल की हकीकत से अगाह थे।
यही वजह है कि यह हज़रात तमाम जिंदगी माल की मज्ज़मत और इसकी तबाह कारी बयान फ़रमाते रहे।
नेकियों के हीर्ष दुनिया और आखिरत की कामयाबी है ,
जबकि मालवा दौलत के लालच में दिन व दुनिया की तबाही और बर्बादी है।
बंदा माल दौलत के लालच में मुब्तिला हो करम बसा औकात झुठ जैसी बुरी बीमारी में मुब्तला हो जाता है।
दुनिया के लालच इंसान को अच्छे सोह़बत से दूर कर देता है।
और बिला आखीर उसे तबाही के की दलदल में ला खड़ा कर देता है।
आज हमारा माआसरा माल की मोहब्बत में बुरी तरह से फस चुका है।
जिसे देखो उस पर माल व दौलत जमा करने की धुन सवार है।
पैसा हो चाहे जैसा हो,
इस तरह की सोचने ह़लाल और ह़राम की तमीज़ को ख़त्म कर दिया है।
इतना जमा कर लिया है कि सातों नसले खाए फिर भी ख़त्म ना हो।
मगर माल जमा करने का नशा है के खत्म होने का नाम नहीं लेता।
लालच कम होने के बजाय मजीद बढ़ती ही चली जा रही है।
माल दौलत के लालच में इनसान मिलावट वाली चीज को एक नंबर कह कर बेचा जा रहा है।
शोहरत इज्जत और मंसब के हुसूल के , लालच में रिश्वत देने और दूसरों के हक़ मारने से भी नहीं कतराते।
और ऐशो-आराम की जिंदगी गुजारने के बावजूद भी दिल में माल की लालच हमेशा मचलती रहती है।